BHDLA-137 हिन्दी भाषा- संप्रेषण कौशल ( Hindi bhasha sampreshan Kaushal ) || हिन्दी Most important question answer

hindi bhasha sampreshan kaushal.

  ( परिचय )

प्रिय विद्यार्थियों इस वाले Article में हम आपको बताने वाले हैं BHDLA-137 हिन्दी भाषा-  संप्रेषण कौशल ( Bharat mein rajnitik sanrachnaen )  इसमें आपको सभी important question- answer देखने को मिलेंगे इन question- answer को हमने बहुत सारे Previous year के  Question- paper का Solution करके आपके सामने रखा है  जो कि बार-बार Repeat होते हैं, आपके आने वाले Exam में इन प्रश्न की आने की संभावना हो सकती है  इसलिए आपके Exam की तैयारी के लिए यह प्रश्न उत्तर अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। आपको आने वाले समय में इन प्रश्न उत्तर से संबंधित Video भी देखने को मिलेगी हमारे youtube चैनल Eklavya ignou पर, आप चाहे तो उसे भी देख सकते हैं बेहतर तैयारी के लिए

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Q-1.  संचार माध्यमों का महत्व बताइए ?

मनुष्य संप्रेषण के लिए रोजाना अनेक संचार माध्यमों का प्रयोग करता है। पुराने समय में यह संचार माध्यम एक सीमित सीमा तक हुआ करते थे जिसके कारण संचार की प्रक्रिया बहुत धीरे हुआ करती थी संचार के आधुनिक माध्यम आने से पहले संचार का प्रमुख माध्यम पत्र हुआ करता था यह पत्र कई दिनों ,महीनों और सालों में भी पहुँचा करते थे जिसके कारण लोगों को अत्यधिक समस्या का सामना करना पड़ता था। आधुनिक संचार माध्यम आने से संचार की प्रक्रिया बहुत जल्दी संपन्न हो जाती है।

संचार माध्यमों  के प्रकार

  • दृश्य माध्यम
  • श्रव्य माध्यम
  • मुद्रित माध्यम
  • इलेक्ट्रॉनिक माध्यम

संचार माध्यमों का महत्व -

सूचना का प्रसार -

संचार माध्यमों के आने से संचार की प्रगति हुई एक ही समय में बहुत सारे लोगों तक एक बात पहुंचाई जा सकती है यह कार्य पुराने समय में अत्यधिक कठिन हुआ करता था परंतु आज संचार के माध्यमों के द्वारा एक बड़ी जनसंख्या को एक बार में अपने विचार प्रदान किए जा सकते हैं।

समय की बचत - कम समय में संचार माध्यमों के द्वारा संप्रेषण की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है जिसके कारण लोगों की समय की बचत होती है लोग अपना समय अन्य कार्यों में प्रदान कर सकते हैं।

लोगों का मनोरंजन-

माध्यम न केवल आज सूचना की प्रसार तक सीमित है बल्कि यह घर-घर में मनोरंजन का एक साधन भी बन चुके हैं लोग टेलीविजन में अपने पसंदीदा चैनल पर कुछ भी देख कर अपना मनोरंजन कर सकते हैं।

भविष्य की जानकारी-

संचार माध्यमों के द्वारा मनुष्य को आज होने वाले भविष्य के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है आपने भी कभी ना कभी बाहर जाने से पूर्व मौसम का हाल, रास्ते की जानकारी ,रास्ते में होने वाले ट्रैफिक आदि को अपने इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अवश्य जांचने का प्रयास किया होगा

यह संचार माध्यम के द्वारा ही संभव हो सका है।

विश्व का एकीकरण-

विश्व में हो रही किसी भी समस्या या विकास की जानकारी जो पहले कई सालों में दूसरे देशों तक पहुंच पाती थी वह आज कुछ मिनटों के अंदर ही पूरी दुनिया में फैल जाती हैं इससे विश्व एकीकरण की ओर बढ़ रहा है।

निष्कर्ष  -

संचार माध्यम के विकास से मनुष्य का जीवन अत्यधिक सुगम हो चला है संचार माध्यम के अनेक महत्व है इलेक्ट्रॉनिक माध्यम संचार का सबसे तीव्र माध्यम है।

 

Q.2 संप्रेषण के प्रयोजन को विस्तार से बताइए?

जन्म लेने के साथ बच्चा रोना प्रारंभ कर देता है यानि उसके जीवन में उसका पहला संप्रेषण है उसके बाद बच्चा धीरे-धीरे 1-2 शब्दों से अपने संप्रेषण की शुरुआत करता है

प्राणी हर समय किसी न किसी रूप में संप्रेषण करता रहता है

मानव एक सामाजिक प्राणी है जो संप्रेषण के बिना नहीं रह सकता

संप्रेषण के लिए हम अपनी समस्त ज्ञानेंद्रियों का प्रयोग करते हैं।

संप्रेषण का अर्थ -

संप्रेषण एक या अधिक व्यक्तियों तक अपनी बात पहुंचाने का एक तरीका है

जिसे सुनकर, देखकर, पढ़कर, बोलकर, चित्र बनाकर मानव एक दूसरे तक पहुंचाता है।

 

संप्रेषण का प्रायोजन -

मानव एक सामाजिक प्राणी है जो संप्रेषण के बिना नहीं रह सकता संप्रेषण मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है आइए इस बात को जानने का प्रयास करते हैं।

 

व्यक्तिगत आवश्यकता -

मनुष्य को अपने खाने ,पीने रहने कार्य करने और अन्य जीवन के व्यक्तिगत पहलुओं के लिए अपने परिवारजनों मित्रों से संप्रेषण करना आवश्यक है

अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मानव को अपनी जरूरत बतानी होगी

उदाहरण के लिए एक बच्चा जन्म से रोना प्रारंभ कर देता है जिससे उसकी मां को उसकी तकलीफ का पता चलता है।

व्यक्तिगत संबंध -

मनुष्य समाज में लोगों के साथ रहता है जिससे वह संप्रेषण कर, वे अपने मित्रों और

जान पहचान वालो से संवाद की प्रक्रिया आगे बढ़ाता है। अपने सामाजिक संबंध को बढ़ाने के लिए व्यक्ति को समाज में जाकर संप्रेषण करने की आवश्यकता होती है।

 

सूचना -

जब भी किसी प्रकार की सूचना देनी हो तो लोग किसी न किसी माध्यम से दूसरे व्यक्तियों तक सूचना पहुंचाते हैं जनसंचार माध्यमों के विकसित होने से सूचना क्षण भर में दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाती है।

 

आपस में संवाद -

मनुष्य समाज में रहकर अपने विकास के लिए लोगों से बातचीत करता है इसमें अपने मन की बातें, वाद विवाद, गप्पे मारना, भावनाओं को प्रकट करना, दूसरों का दृष्टिकोण समझना सभी प्रकियाएं करता है।

 

मनोरंजन -

मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए भी संप्रेषण का सहारा लेता है।

मनोरंजन के लिए व्यक्ति घूमना ,बातें करना, टेलीविजन देखना, हंसना गप्पें मारना आदि क्रियाएं करता है कुछ मनुष्य मनोरंजन के लिए किताबों का सहारा लेते हैं इसीलिए व्यक्ति को अपने मनोरंजन के लिए भी संप्रेषण की आवश्यकता होती है।

आग्रह -

व्यक्ति को अपने विकास के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचा सके इसके लिए वह संप्रेषण के नए-नए तरीके चुनते हैं जिस प्रकार कंपनियां अपने समान का प्रचार करती है और लोगों को अपना सामान लेने के लिए आग्रह किया करती है इससे ग्राहक कंपनियों की ओर आकर्षित होकर उनके सामान की खरीदारी करते हैं इसी तरह संप्रेषण से ग्राहकों की इच्छा  और अन्य कमजोरी का फायदा उठाकर कंपनियां अपना विकास करती है।

 

निष्कर्ष -

इस प्रकार  संप्रेषण मनुष्य की के जीवन में अति महत्वपूर्ण होता है

संप्रेषण के बिना मनुष्य सामाजिक प्राणी नहीं कहलाता।

  

Q.3 भाषा के लिखित, मौखिक और आंगिक रूप की विशेषताएं बताइए?

व्यक्ति को अपने भावों विचारों को प्रकट करने के लिए संप्रेषण की आवश्यकता होती है संप्रेषण के द्वारा ही वे यह कार्य संपन्न कर पाता है

संप्रेषण के दौरान प्रयोग की जाने वाली भाषा में कुछ गुण होना आवश्यक है

भाषा संप्रेषण का मूल आधार है भाषा वह साधन है जिसके द्वारा विचारों की अनुभूति कर संप्रेषण किया जाता है

भाषा शब्द भाष् धातु से बना है जिसका अर्थ व्यक्त वाणी में कुछ कहना है

वाणी एक सार्थक ध्वनि होनी चाहिए जिसका कोई अर्थ निकले।

भाषा का विकास एक सतत प्रक्रिया है जिस भाषा का प्रयोग आमजन करते हैं

उसके शब्द भंडार में बढ़ोतरी होती रहती है।

 

संप्रेषण  के विभिन्न रूप -

ध्वनि भाषा की सबसे छोटी इकाई है ध्वनि के द्वारा शब्दों का निर्माण होता है शब्दों के सार्थक समूह से वाक्य का निर्माण होता है वाक्य के द्वारा हम भाषा का प्रयोग लिखित मौखिक रूप से करते हैं सभी प्रकार की भाषाओं में अपनी कुछ विशेषताएं और कमियां  पाई जाती है।

 

लिखित भाषा -

लिखित भाषा के अंतर्गत 3 गुण पाए जाते हैं -  प्रसाद , ओज और माधुर्य।

प्रसाद का अर्थ प्रसन्नता से है , लिखित सामग्री सहज और सरल रूप से अभिव्यक्त की जाए जिससे पाठक वर्ग को प्रसन्न कर सकें।

ओज का शाब्दिक अर्थ तेजस्विता से है , ओज का भाषा में प्रयोग शब्दावली के रूप में किया जाता है लिखते समय ऐसी भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए जिससे मन में उत्साह की उत्पत्ति हो। पढ़ते समय पाठक वर्ग के मन मे रसों  का निरंतर प्रवाह चलता रहे।

माधुर्य का अर्थ मिठास से है , रचना को पढ़ते समय पाठक वर्ग को आनंद की अनुभूति हो जिससे उसकी रूचि पठन में और अधिक तीव्र हो सके।

भाषा के अंतर्गत यह तीनों गुण होना अनिवार्य है।

 

मौखिक भाषा-

मौखिक भाषा के अंतर्गत उच्चारण बोध की प्रक्रिया शामिल होती है इसके अंतर्गत वक्ता श्वेता से सीधे रूप से जुड़ा रहता है। मौखिक भाषा का स्वरूप अस्थाई होता है इसीलिए प्रशासनिक कार्य लिखित भाषा में किए जाते हैं ताकि इसका स्वरूप स्थाई रह सके।

आंगिक भाषा (Boby language)-

आंगिक भाषा का अर्थ मनुष्य के मनोभाव से होता है यह मानव के शरीर के भावों को बिना बोले प्रकट कर सकता है जैसे क्रोध में व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियां सिकुड़ना करना आंखें लाल होना  ,खुशी में प्रसन्न होना आदि

यह भाषा शरीर के द्वारा सांकेतिक रूप से बिना बोले सामने वाले को प्रकट की जा सकती है।

 

निष्कर्ष –

इस प्रकार देखा जा सकता है कि समाज के विभिन्न रूप है जैसे मौखिक, लिखित और आंगिक इसका उदाहरण है।

 

Q.4 - संप्रेषण का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसकी मूल तत्व पर प्रकाश डालिए?

मानव आदिकाल से ही अपनी बातों को दूसरों तक पहुंचाने के लिए संप्रेषण का प्रयोग करता है यह संप्रेषण अलग-अलग रूपों में किया जाता है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह संप्रेषण  के बिना अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकता

संप्रेषण करने के लिए कुछ मूलभूत तत्व आवश्यक है जिनके द्वारा संप्रेषण  की प्रक्रिया संपन्न होती है।

 

संप्रेषण का अर्थ -

अपने विचार और भावों को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने की प्रक्रिया को ही संप्रेषण  कहा जाता है।

संप्रेषण  अलग-अलग माध्यमों के द्वारा किया जाता है

जैसे - श्रव्य माध्यम, दृश्य माध्यम ,मुद्रित माध्यम आदि।

संप्रेषण  के मूल तत्व-

संप्रेषण की प्रक्रिया को संपन्न करने के लिए कुछ मूल तत्व की आवश्यकता होती है जिसके कारण एक सफल संप्रेषण  संपन्न हो पाता है।

वक्ता-

संप्रेषण  के लिए सर्वप्रथम किसी एक बोलने वाले की आवश्यकता होनी चाहिए जो अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाएं।

 

श्रोता-

संप्रेषण के मूल तत्व में श्रोता होना आवश्यक है यदि वक्ता अपनी बात को किसी श्रोता के सामने ना कहें तो यह एक संप्रेषण  की सफल क्रिया नहीं मानी जा सकती।

माध्यम-

वक्ता और प्राप्तकर्ता के बीच किसी ना किसी माध्यम से संप्रेषण  की क्रिया सफल होती है। यदि आप अपने मित्र से फोन पर बात कर रहे हैं इसके लिए माध्यम आपका फोन बनता है इसमें आप वक्ता और आपका मित्र श्रोता या प्राप्त-करता  है।

उद्देश्य-

प्रत्येक संप्रेषण  का कोई ना कोई उद्देश्य होता है बिना उद्देश्य के मनुष्य किसी भी प्रकार का संप्रेषण नहीं करता। जन्म के बाद शिशु भी अपने उद्देश्य के लिए रो कर अपनी बात अपनी माता तक पहुंचाता है जिससे उसकी माता को उसकी भूख ,प्यास व तकलीफ का पता चलता है इसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य किसी ना किसी उद्देश्य से संप्रेषण  की प्रक्रिया पूर्ण करता है।

 

निष्कर्ष -

मानव के लिए संप्रेषण अत्यधिक आवश्यक है संप्रेषण के द्वारा मानव अपना विकास करता है मानव को समाज में रहकर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए अपने संप्रेषण कौशल को मजबूत करना अत्यधिक आवश्यक है जिसके लिए उसे मूलभूत तत्व की आवश्यकता होती है या मूलभूत तत्व वक्ता , प्राप्तकर्ता, माध्यम और उद्देश्य हैं

संप्रेषण  के बीच रुकावट शोर या अन्य सामग्री हो सकती है जिससे संप्रेषण की प्रक्रिया बीच में अधूरी रह जाती है।

 

Q.5 वैयक्तिक लेखन की विभिन्न विधाओं के अंतर को स्पष्ट करते हुए उनकी भाषा पर प्रभाव डालिए?

मनुष्य ने अपनी इच्छाओं को प्रकट करने के लिए माध्यम का प्रयोग किया

जिसे भाषा कहा जाता है

माध्यम के रूप में मनुष्य ने लिखकर या बोलकर अपने विचारों को अभिव्यक्त करते हैं  भाषा का वह रूप जिसमें अभिव्यक्ति की जाती है वैयक्तिक लेखन कहलाता है।

वैयक्तिक लेखन के अंतर्गत लेखक और उसकी अभिव्यक्ति के बीच कोई दूसरा व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

 

वैयक्तिक लेखन का अर्थ-

लेखक द्वारा अपने भावों की अभिव्यक्ति को ही  वैयक्तिक लेखन कहा गया है इसके उदाहरण - यात्रा वृतांत, संस्मरण, रेखाचित्र, जीवनी, डायरी आदि है। इन विधाओं के वर्णन में लेखक पूर्ण रूप से अपनी अभिव्यक्ति कर पाता है।

 

वैयक्तिक लेखन की विभिन्न विधाएं-

वैयक्तिक लेखन की विभिन्न विधाएं बहुत सारी है सभी विधाओं के अंतर्गत अपनी-अपनी कुछ विशेषताएं शामिल है। इन विधाओं का प्रयोग केवल साहित्यकारों द्वारा नहीं किया जाता बल्कि सामान्य जन भी इनका प्रयोग करता है।

आत्मकथा-

आत्मकथा के अंतर्गत अतीत के जीवन का विवरण दिया जाता है लेखक अपने बीते हुए कल को आत्मकथा के माध्यम से पुनर्जीवित करता है सामान्यतः लेखक अपने अपनी आत्मकथा में उन घटनाओं का विवरण करते हैं जिन्होंने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला अन्य विधाओं की भांति आत्मकथा भी लेखक की सृजनात्मकता का प्रतीक है इसमें कथा और रस की अनुभूति एक मूलभूत तत्व है लेखक जो भी लिख रहा है उसके प्रति ईमानदार, निष्पक्ष रहे यह उसकी जिम्मेदारी बनती है।

डायरी-

डायरी लेखन आज एक आम व्यक्ति भी करता है जिससे वह अपने दैनिक विचारों भावों को स्वतंत्र रूप से प्रकट करता है इसमें व्यक्ति दिनांक, तिथि व घटना का विस्तार पूर्वक वर्णन कर सकता है। डायरी लेखन का मूलभूत तत्व स्वतंत्र रूप से अभिव्यक्ति माना गया है डायरी लेखन में लेखक अपने निजी अनुभव को साझा करता है ऐसा माना गया है कि एक व्यक्ति की डायरी उसका प्रतिबिंब कहलाती है प्रतिदिन डायरी लेखन कोई अनिवार्य शर्त नहीं है इसे सप्ताह महीने के अंतराल में भी किया जा सकता है।

 

यात्रा वृतांत-

लेखक  अपनी यात्रा के बारे में विस्तार पूर्वक वर्णन कर अपने अनुभव को साझा करता इसे ही यात्रा वृतांत कहां गया है यात्रा वृतांत के अंदर कल्पना की गुंजाइश नहीं होती इसमें जो पल बिताए गए हैं उनकी प्रधानता रखी जाती है यात्रा अलग-अलग कारण वश की जा सकती है यात्रा में देखे गए प्राकृतिक सौंदर्य मनुष्य का वर्णन स्थान का वर्णन आदि यात्रा वृतांत के अंतर्गत किया जाता है यात्रा वृतांत में तथ्य और स्थान पर मुख्य रूप से बल दिया गया है इसका स्वरूप अन्य विधाओं की तुलना में अलग है।

संस्मरण-

संस्मरण का अर्थ है लेखक द्वारा जो देखा गया है जिसका वह स्वयं अनुभव करता है उसे उसी प्रकार से वर्णन करना। अतीत की घटनाओं पर आधारित होता है। इसमें पूरे जीवन से कुछ घटनाओं का ही वर्णन किया जाता है जो पाठक वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत बन सके।

 

निष्कर्ष –

इस प्रकार देखा जा सकता है कि वैयक्तिक लेखन की बहुत सारी विधाएं हैं। इन विधाओं के शामिल होने से हिंदी भाषा का स्वरूप विशाल सागर की तरह हो चुका है।

 

Q.6 श्रव्य और दृश्य माध्यमों की भाषा में अंतर को बताइए?

संचार के बहुत से माध्यम मनुष्य के आसपास मौजूद हैं इन माध्यमों के प्रयोग से व्यक्ति संचार को कम समय में कर सकता है। पुराने समय में संचार माध्यमों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी व्यक्ति को अपनी बात पहुंचाने के लिए कई दिनों, महीनों का इंतजार करना पड़ता था परंतु बदलते समय के साथ यह कार्य बड़ी आसानी से किया जा सकता है।

 

संचार माध्यम का अर्थ-

अपनी बात को पहुंचाने के लिए जिस माध्यम का प्रयोग किया जाता है

उसे संचार माध्यम कहा जाता है। वर्तमान समय में संचार के माध्यमों की संख्या तीव्रता से बड़ी है , तकनीकी विकास के कारण संचार के माध्यम काफी तीव्रता से संचार के क्षेत्र में क्रांति ला रहें हैं

 

संचार माध्यम के प्रकार -

संचार के मुख्य रूप से तीन माध्यम है।

  1. श्रव्य माध्यम
  2. दृश्य माध्यम
  3. मुद्रित माध्यम

 

श्रव्य और दृश्य माध्यम में भाषा का अंतर-

श्रव्य माध्यमों की भाषा-

अर्थ- श्रव्य माध्यम का अर्थ उन माध्यमों से है  जिन्हें व्यक्ति द्वारा सुना जाता है

उदाहरण-  रेडियो , ऑडियो  सीडी आदि।

लाभ  - मुख्य रूप से रेडियो श्रव्य माध्यमों में देखा जाता है रेडियो में साक्षात्कार ,बातचीत, वार्ता, गीत, नाटक, समाचार सभी चीजें सुनी जा सकती है परंतु सभी चीजों के अनुसार भाषा में भी बदलाव होता है समाचार सुनने के साथ-साथ समझना और स्पष्ट भाषा का प्रयोग होना अनिवार्य है ताकि सभी लोगों को समाचार समझ आ सके।

रेडियो में छोटे और प्रभावशाली वाक्यों का प्रयोग किया जाता है।

नुकसान- रेडियो में एक बार सुने गए समाचार दोबारा अपनी सुविधा अनुसार आगे- पीछे नहीं किए जा सकते व्यक्ति के अनुसार  रेडियो अलग-अलग गति से काम नहीं करता उसकी गति सभी के लिए एक जैसी होती है।

रेडियो में छोटे और प्रभावशाली वाक्यों का प्रयोग किया जाता है।

 

दृश्य माध्यमों की भाषा-

अर्थ- दृश्य माध्यम का अर्थ ऐसे माध्यमों से है जिसमें व्यक्ति चित्रों को देखता और सुनता है।

उदाहरण-  सिनेमा, टेलीविजन , सीडी है।

लाभ- दृश्य माध्यमों में दृश्य साथ में होने के कारण प्रत्येक क्षण को शब्दों में कहने की आवश्यकता नहीं पड़ती जैसे श्रव्य या मुद्रित माध्यम में पढ़ती है इसमें व्यक्ति बहुत सारी चीजें बिना कहे देख कर ही समझ जाता है।

दृश्य माध्यम में व्यक्ति के अधिक ज्ञानेंद्रियां कार्य करती हैं जिससे यह अधिक प्रभावशाली साबित हो जाता है भाषा बोलचाल के अनुरूप होनी चाहिए जिससे व्यक्ति सुनकर और देखकर समझ सके दर्शक को ध्यान में रखकर ही भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष -

इस प्रकार देखा जा सकता है कि संचार माध्यमों में श्रव्य और दृश्य माध्यमों की भाषा में अधिक अंतर नहीं होता परंतु दृश्य माध्यम लोगों के मन में अधिक छाप छोड़ जाता है दोनों ही माध्यमों में भाषा सरल व स्पष्ट होनी आवश्यक है।

 

Q.7 सर्जनात्मक लेखन की भाषा के महत्व को विस्तार से बताइए?

हिंदी में अनेक प्रकार के साहित्य और विधाएं पाई जाती है। सृजनात्मक लेखन के अंतर्गत लेखक अपनी रचनाओं में कुछ नयापन लाने की कोशिश करता है जिससे पाठक वर्ग रचना के प्रति आकर्षित हो सके। भाषा संस्कृति का सबसे शक्तिशाली उपकरण है।

सृजनात्मक लेखन का महत्व-

भाषा के विकास में योगदान-

सृजनात्मक भाषा के द्वारा ही भाषा को चरम सीमा तक पहुंचाया गया है भाषा के विकास में सृजनात्मक लेखन का अत्यधिक महत्व है भाषा को स्थिर रूप सृजनात्मक लेखन द्वारा ही प्रदान हुआ है।

 

भाषा का नवीकरण-

नए शब्द संपदा की खोज सृजनात्मक लेखन द्वारा ही की जाती है हिंदी साहित्य में रीति काव्य में भाषा की जड़ बहुत मजबूत हुई शब्दों को इतना नया रूप दिया गया कि आज शब्दावली बहुत व्यापक हो चली है जिस प्रकार मनुष्य कसरत से मजबूत बनता है उसी प्रकार भाषा में सृजनात्मक लेखन द्वारा भाषा अधिक मजबूती से समाज में बनी रहती है

 

भाषा के अंदर  नए आविष्कार-

भाषा में नवीनता केवल शब्दों के माध्यम से नहीं आती रचनात्मक लेखन द्वारा नए-नए लेखक अपनी रचना को और अधिक काल्पनिक से वास्तविक रूप देने का प्रयास करते हैं जिसके कारण हिंदी की कई विधाएं बताई जा रही हैं जिस प्रकार नाटक से एकांकी एक नई विधा के रूप में दिखाई पड़ती है उसी प्रकार लेखकों के इस आविष्कार से हिंदी भाषा का स्वरूप और विस्तृत रूप ले रहा है।

 

निष्कर्ष -

सृजनात्मक लेखन हिंदी भाषा के विकास में अत्यधिक महत्वपूर्ण योगदान निभा रहा है यह दिन पर दिन समाज में हिंदी भाषा की स्थिति को मजबूत जड़े प्रदान कर रहा है जिससे या अधिक समय तक समाज में टिकी रहे और लोगों का आकर्षण इसके प्रति कम ना हो सके।

 

 Q. 8 भाषा की व्यवहारिक पक्ष पर प्रकाश डालिए?

भाषा संप्रेषण का माध्यम है भाषा का प्रयोग सोच समझकर किया जाना चाहिए

अपने व्यवहारिक जीवन में आपने महसूस किया होगा कि जो लोग ज्यादा बोलते हैं उनकी बात का वजन अधिक नहीं रह जाता परंतु जो व्यक्ति कम तथा सटीक बोलना पसंद करते हैं उनकी बात को अधिक महत्व दिया जाता है इसीलिए भाषा का व्यवहारिक रूप सोच समझकर प्रयोग किया जाना चाहिए। भाषा की कला के संदर्भ में सबसे अधिक महत्वपूर्ण उसका व्यवहारिक पक्ष ही है।

 

भाषा की व्यवहारिक रूप में महत्वपूर्ण पक्ष-

वक्ता-

वक्ता के ऊपर ही भाषा का पूरा शुरू निर्भर करता है जिस प्रकार वक्ता की मानसिक स्थिति व भाषाई कौशल होते हैं उसी अनुरूप भाषा को आगे बढ़ाया जाता है। वक्ता के बोलने से ही भाषा की बारे में बहुत सारी बातें पता चलती है।

 

श्रोता -

व्यवहारिक पक्ष में दूसरा महत्वपूर्ण श्रोता होता है कई बार वक्ता श्वेता के अनुसार ही अपनी भाषा का प्रयोग करता है उदाहरण के तौर पर माता-पिता बच्चों से उनकी उम्र के अनुसार ही संप्रेषण  करना पसंद करते हैं वही  अपने दोस्तों से कुछ विभिन्न प्रकार से संप्रेषण  करते हैं इसीलिए श्वेता की उम्र, धर्म, जाति के आधार पर भाषा का प्रयोग किया जाता है।

 

कथन-

भाषा के व्यवहारिक पक्ष में तीसरा महत्वपूर्ण पक्ष कथन है अर्थात किस चीज के ऊपर संप्रेषण  किया जा रहा है जिस प्रकार का विषय होगा उसी प्रकार की भाषा का प्रयोग किया जाएगा। यदि इतिहास की बातचीत चल रही हो तो इतिहास के अधिक शब्दों का प्रयोग किया जाएगा। वही किसी धार्मिक विषय के बारे में संवाद किया जा रहा है तो उस स्थिति में धार्मिक शब्दावली का प्रयोग किया जाएगा। यह ध्यान रखने योग्य बात है जिस प्रकार विषय बदलता है उसी प्रकार भाषा का प्रयोग भी बदलता है।

 

उद्देश्य-

भाषा के व्यवहारिक पक्ष का चौथा स्तंभ उद्देश्य है बातचीत करते समय किस उद्देश्य के लिए संवाद किया जा रहा है इस पर भी ध्यान रखना आवश्यक है जिस प्रकार का उद्देश्य होगा व्यक्ति उसी प्रकार की शब्दावली और भाषा का रूप का प्रयोग करता है। उदाहरण के तौर पर यदि आप गप-शप करने मित्र के पास बैठे हैं तो आप मजाक की भाषा का प्रयोग कर सकते हैं वहीं अगर आप अपने कार्यालय में कार्य कर रहे हैं वह आपका उद्देश्य गपशप करना नहीं अपने कार्य को पूरा करना है तो आप उसी अनुरूप भाषा का प्रयोग करते हैं इसीलिए जिस प्रकार उद्देश्य में बदलाव होते हैं उसी प्रकार भाषा में भी बदलाव किया जाता है। एक अन्य उदाहरण ट्रेन का देखा जा सकता है ट्रेन में यदि आप अपने उद्गम स्थान से गंतव्य स्थान जाते हैं तो उद्गम स्थान के स्टेशन का नाम पहले तथा गंतव्य स्थान के स्टेशन के नाम आखिरी में आता है वही आप कुछ समय बाद अपने गंतव्य स्थान से घर की ओर लौट रहे हैं तो यही प्रक्रिया उलटी हो जाती है अर्थात जिस प्रकार उद्देश्य में बदला हुआ है उसी प्रकार भाषा के स्वरूप में भी बदलाव किए गए हैं।

 

निष्कर्ष -

इस प्रकार देखा जा सकता है कि भाषा का व्यावहारिक पक्ष मनुष्य के जीवन में कितना अधिक महत्वपूर्ण है भाषा के व्यवहारिक पक्ष को मजबूत कर व्यक्ति एक अच्छा भाषाविद बन जाता है जो समाज में अपनी बात आसानी से मनवा लेता है

भाषा की समझ एक ऐसा अस्त्र है

जिससे व्यक्ति आसानी से किसी भी समस्या पर विजय हासिल कर सकता है।

 

 

Q. 9 लिखित भाषा का महत्व बताइए?

                      या

उच्चारित  भाषा और लिखित भाषा की विशेषताएं बताइए?

 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है समाज बनाने के लिए मनुष्य के पास भाषा का माध्यम होना अत्यधिक आवश्यक है मनुष्य का समाजीकरण केवल भाषा के माध्यम द्वारा ही संभव है मनुष्य अपने परिवार ,परिवेश, समाज से भाषा के द्वारा ही अपने विचारों का आदान प्रदान करता है इस आदान-प्रदान को ही संप्रेषण या संवाद का नाम दिया गया है मानव समाज में संप्रेषण  एक महत्वपूर्ण घटक है।

भाषा और लिखित भाषा एक दूसरे से अलग ना होकर पारस्परिक संबंधित है।

उच्चारित  भाषा का अर्थ-

मनुष्य अपने विचारों को दो प्रकार की भाषा से प्रकट करता है या तो बोलकर या लिखकर अपनी बातों को बोलकर प्रकट करना ही उच्चारित  भाषा है

उच्चारित  भाषा के लिए श्रोता का सामने होना जरूरी है।

उच्चारित  भाषा को अर्जित किया जाता है।

 

लिखित भाषा का अर्थ-

भाषा का स्वरूप जिसे लिखकर प्रकट किया जाता है वह लिखित भाषा कहलाता है। आमजन में लिखित भाषा की अपेक्षा उच्चारित  भाषा का अधिक प्रयोग किया जाता है उच्चारित  भाषा को अपने वातावरण से ही अर्जित कर लेते हैं

इसीलिए इसका प्रयोग अधिक किया जाता है।

लिखित भाषा की विशेषता-

 

स्थाई रूप-

लिखित भाषा एक स्थाई रूप में बनी रहती है। कुछ बातों को व्यक्ति बोलकर भूलने की संभावना बनी रहती है परंतु लिखित भाषा में ऐसा नहीं होता इसका स्वरूप स्थाई है इसीलिए अधिकारी कार्यालय में लिखित भाषा का प्रयोग किया जाता है भारत का संविधान भी लिखित रूप में बनाया गया है।

 

सुरक्षा-

लिखित भाषा को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है इसे भविष्य में किसी अन्य कार्य के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है इतिहास में पांडुलिपियाँ मिलना लिखित भाषा के ही साक्ष्य है।

 

सतर्कता का ध्यान-

लिखित भाषा की प्रकृति में व्यक्ति सोच समझकर शब्दों का चयन कर सकता है इसमें वे लिखने से पहले पूरी सतर्कता रखता है परंतु  उच्चारित  भाषा में व्यक्ति को सोच समझकर बोलने का समय प्राप्त नहीं हो पाता।

 

मूलभूत इकाई वर्ण -

लिखित भाषा में मूलभूत इकाई वर्ण है वर्णों के समूह से सार्थक शब्दों का निर्माण होता है और सार्थक समूह से वाक्यों का निर्माण होता है जिसके आधार पर पूरे लिखित भाषा आगे की ओर चलती जाती है।

उच्चारित  भाषा की विशेषता-

व्यापक स्वरूप-

उच्चारित  भाषा का प्रयोग सभी लोग कर सकते हैं लिखित भाषा केवल शिक्षित व्यक्तियों द्वारा ही प्रयोग की जा सकती है परंतु उच्चारित  भाषा का प्रयोग अनपढ़ व्यक्तियों के द्वारा भी किया जाता है।

 

श्रोता के अनुसार भाषा-

उच्चारित  भाषा में श्रोता के अनुसार ही वक्ता शब्दों का चयन करता है

उदाहरण - यदि अपने से बड़े श्रोता से बात की जा रही है तो वहां आप बोल कर उन्हें संबोधित किया जाता है वही अपने से छोटे श्रोता से बात की जा रही है

तो तुम कह कर संबोधित किया जाता है।

मूलभूत इकाई ध्वनि-

भाषा में उच्चारित  भाषा में मूलभूत इकाई ध्वनि है

श्रोता और वक्ता आमने-सामने बैठकर ध्वनियों के शब्द जाल से ही खेलते हैं।

 

अस्थाई स्वरूप-

उचित भाषा का स्वरूप उच्चारित  भाषा का स्वरूप स्थाई है जिसके कारण पूर्व में बोली गई बात को भी अपने अनुसार व्यक्ति बदलाव कर बोल सकता है।

निष्कर्ष 

इस प्रकार देखा जा सकता है कि उच्चारित  भाषा और लिखित भाषा दोनों में अपनी कुछ विशेषताएं और कमियां है दोनों भाषाओं के प्रयोग से मानव अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है।

Q.10 उच्चारित  भाषा के प्रकार्य को स्पष्ट कीजिए?

सामाजिक संप्रेषण की दृष्टि से भाषा का उच्चारित  रूप ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है बोलचाल की भाषा उच्चारित  भाषा को ही अधिक महत्व दिया गया है

भाषा समाज में बोलने वालों की संख्या और भाषा लिखने वालों की संख्या की तुलना में बोलने वालों की संख्या हमेशा अधिक रही है

इसलिए उच्चारित  भाषा का महत्व भी पौराणिक काल से अधिक ही रहा है।

 

उच्चारित  भाषा के प्रकार्य -

 

संप्रेषण -

उच्चारित  भाषा का सर्वप्रथम कार्य मनुष्य के बीच संप्रेषण  करना ही है मनुष्य अपने संप्रेषण  के लिए उच्चारित  भाषा का ही प्रयोग करता है श्वेता और वक्ता आमने-सामने बैठकर अपने भाव विचारों को प्रकट करते हैं।

 

परिवर्तनशील-

उच्चारित  भाषा का स्वरूप प्रत्येक स्थान पर एक जैसा नहीं रहता

भारत जैसे बड़े भू भाग वाले क्षेत्र में बहुत सी उच्चारित भाषा का प्रयोग किया जाता है

यह भाषा हर 4 से 5 किलोमीटर में कुछ ना कुछ बदलाव के साथ सामने आती है।

इसमें क्षेत्रीय भाषाओं का प्रभाव भी देखने को मिलता है।

 

सरलीकरण-

एक बड़े भूभाग में बोले जाने के कारण ही उच्चारित भाषा का विस्तार दिन प्रतिदिन होने लगा जिसके कारण इसका स्वरूप अत्यधिक सरल हो गया इसीलिए उच्चारित  भाषा का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा किया जाता है।

 

अंग-विक्षेप (Body language )का प्रयोग-

उच्चारित  भाषा में अंग-विक्षेप का प्रयोग किया जाता है।

जिसके द्वारा भाषा का प्रभाव और अधिक गहरा पड़ता है।

इस प्रकार देखा जा सकता है कि उच्चारित भाषा के बहुत से प्रकार्य है।

 

11.) पत्र लेखन के विभिन्न प्रकारों के बारे में बताइए?

पत्र लेखन एक ऐसा कार्य है इसे कोई भी शिक्षित व्यक्ति आसानी से कर सकता है पत्र लेखन रिश्तेदार, मित्रों व कार्यालय आदि स्थानों पर दिया जाता है कुछ समय पहले पत्र लेखन द्वारा ही   संवाद की प्रक्रिया पूर्ण हो पाती थी लोग दूर-दूर स्थानों से अपने प्रिय जनों को पत्र लिखा करते थे। परंतु आज पत्रों का महत्व घट गया है आज पत्र केवल कार्यालय तक अधिक सीमित रह गए हैं।

पत्र लेखन के विभिन्न प्रकार-

पत्र लेखन के मुख्य रूप से तीन प्रकार होते हैं-
 
औपचारिक पत्र

अनौपचारिक पत्र

अर्द्ध सरकारी पत्र 


औपचारिक पत्र-

कार्यालय सरकारी स्तर पर लिखे जाने वाले पत्रों को औपचारिक पत्र कहा जाता है। इसके अंदर आवेदन पत्र,सरकारी पत्र, व्यावहारिक पत्र को शामिल किया गया है।

आवेदन पत्र- आवेदन पत्र या प्रार्थना पत्र ऐसे पत्रों को कहा जाता है जिसमें पत्र लिखने वाला व्यक्ति किसी बात के लिए अन्य व्यक्ति से प्रार्थना करता है। उदाहरण के लिए अपने विद्यालय में छुट्टी के लिए आवेदन पत्र अवश्य लिखा होगा, बैंक में खाता खोलने के लिए पत्र आदि आवेदन पत्र के उदाहरण है।
इसमें औपचारिक भाषा का प्रयोग किया जाता है इसमें अपनी समस्या बता कर केवल आवेदन किया जाता है।  इनका स्वरूप अनौपचारिक पत्र की तरह व्यापक नहीं होता।


अनौपचारिक पत्र-

अनौपचारिक पत्र वे पत्र होते हैं जिनमें व्यक्ति अपने मनो भाव को अपने संगे संबंधियों के साथ स्वतंत्र रूप से प्रकट करता है। इस प्रकार के पत्रों के उदाहरण निजी या पारिवारिक पत्र होते हैं।

निमंत्रण पत्र- निमंत्रण पत्र एक अनौपचारिक पत्र है इसका उद्देश्य व्यक्ति या व्यक्तियों को किसी एक विशेष अवसर या समारोह के लिए पत्र भेजकर आमंत्रित करना होता है।

बधाई पत्र- किसी व्यक्ति के चुनाव जीतने पर, परीक्षा सफल होने पर, शुभ कार्य होने पर, नियुक्ति होने पर, आदि ने जो समानता बधाई देने के लिए पत्र प्रयोग किए जाते हैं उन्हें बधाई पत्र के नाम से जाना जाता है।

संवेदना पत्र- किसी के जीवन में निराशा और दुख के अवसर पर व्यक्ति को संवेदना देने हेतु जिस पत्र का प्रयोग किया जाता है उसे संवेदना पत्र के नाम से जाना जानते हैं।

अर्थ सरकारी पत्र /सरकारी पत्र-

सरकार के किसी भी कार्यालय के द्वारा जारी किया गया पत्र सरकारी पत्र कहलाता है यह पत्र राज्य सरकार एक केंद्र सरकार के द्वारा अपने अधीन कार्यालयों में जारी किया जाता है।

12.) संवाद के औपचारिक तथा अनौपचारिक रूपो पर प्रकाश डालिए?

संचार के औपचारिक और अनौपचारिक रूप विभिन्न जानकारी, संदेश या विचार व्यक्त करने की दो अलग- अलग शैलियों को दर्शाता है।
ये शैलियाँ अपने स्वर, भाषा, संरचना और उस संदर्भ में भिन्न होती हैं जिसमें उनका उपयोग किया जाता है। 
विभिन्न स्थितियों में प्रभावी संचार के लिए संचार के इन दो रूपों के बीच अंतर को समझना महत्वपूर्ण है। 

1. औपचारिक संचार:

इसका उपयोग आमतौर पर आधिकारिक, व्यावसायिक, शैक्षणिक और पेशेवर में किया जाता है 
जहां एक निश्चित स्तर की गंभीरता, सम्मान और शिष्टाचार की अपेक्षा की जाती है।


औपचारिक संचार की विशेषताएं:

भाषा औपचारिक संचार में उचित व्याकरण, मानक शब्दावली का उपयोग होता है और बोलचाल की भाषा या कठबोली भाषा से बचा जाता है।

स्वर स्वर गंभीर, विनम्र और सम्मानजनक है।

संरचना संदेश व्यवस्थित होते हैं और पूर्वनिर्धारित प्रारूप का पालन करते हैं। वे अक्सर अभिवादन से शुरू करते हैं (उदाहरण के लिए, "प्रिय," "जिससे यह संबंधित हो सकता है")

मध्यम औपचारिक संचार (उदाहरण के लिए, ईमेल, पत्र, रिपोर्ट) लेकिन औपचारिक बैठकों, प्रस्तुतियों या भाषणों के दौरान मौखिक रूप में भी हो सकता है।

दर्शक इसका उपयोग आम तौर पर वरिष्ठों, ग्राहकों, ग्राहकों, प्रोफेसरों, या अधिकार की स्थिति वाले किसी भी व्यक्ति के साथ संवाद करते समय किया जाता है।

औपचारिक संचार के उदाहरणों में शामिल हैं:

1- नौकरी आवेदन के लिए एक कवर लेटर।
2- किसी संगठन के भीतर भेजा गया एक आधिकारिक ज्ञापन।
3- एक सम्मेलन के दौरान दी गई एक प्रस्तुति।

2. अनौपचारिक संचार:

इसका उपयोग आमतौर पर सामाजिक परिवेश में, दोस्तों, परिवार के सदस्यों और सहकर्मियों के बीच किया जाता है, जिनके बीच घनिष्ठ संबंध होते हैं और वे एक-दूसरे से परिचित होते हैं।

अनौपचारिक संचार की विशेषताएं:

भाषा अनौपचारिक संचार में बोलचाल की भाषा, कठबोली भाषा और अधिक संवादी भाषा का उपयोग किया जा सकता है।
स्वर स्वर मैत्रीपूर्ण, तनावमुक्त है और इसमें हास्य या भावनाएं शामिल हो सकती हैं।
संरचना संदेशों की संरचना के लिए कोई सख्त प्रारूप या नियम नहीं हो सकते हैं। यह मुक्त-प्रवाहित और कम व्यवस्थित हो सकता है।
मध्यम अनौपचारिक संचार विभिन्न रूपों में हो सकता है, जैसे आमने- सामने की बातचीत, पाठ संदेश, त्वरित संदेश, सोशल मीडिया इंटरैक्शन आदि।
दर्शक  इसका उपयोग आमतौर पर दोस्तों, परिवार के सदस्यों, करीबी सहकर्मियों या साथियों के साथ संचार करते समय किया जाता है।

अनौपचारिक संचार के उदाहरणों में शामिल हैं:

1- सोशल मीडिया पर दोस्तों से चैटिंग।
2- योजनाओं के बारे में परिवार के सदस्यों को संदेश भेजना।
3- लंच ब्रेक के दौरान सहकर्मियों के बीच बातचीत।
4- सहपाठियों के साथ शौक या रुचियों के बारे में आकस्मिक चर्चा।

 

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BHDLA-137 हिन्दी भाषा- संप्रेषण कौशल ( Hindi bhasha sampreshan Kaushal ) || हिन्दी Most important question answer
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